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GHAZAL

रास्ता चलते हुए दो हम-क़दम ग़ुस्से में है

रास्ता चलते हुए दो हम-क़दम ग़ुस्से में है

हमसे दुनिया और इस दुनिया से हम ग़ुस्से में है

लिख नहीं पाती जो लिखना चाहती हैं उँगलियाँ

क्या हुआ जाने के हाथों से क़लम ग़ुस्से में है

मुस्कुरा बैठे हैं तुझको मुस्कुराता देखकर

वरना तेरी मुस्कराहट की क़सम ग़ुस्से में है

आ रहा है इक रसूल-ए-हुस्न आई है ख़बर

काबा-ए-दिल में रखे सारे सनम ग़ुस्से में है

मेरी साँसों ने जो उनका बढ़ के बोसा ले लिया

काकुलें ग़ुस्से में हैं जुल्फ़ों के ख़म ग़ुस्से में है

अच्छा लगता है बहुत कहते हैं हमसे लोग जब

वो भी ग़ुस्से में है लेकिन तुमसे कम ग़ुस्से में है

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