हर आह-ए-सर्द इश्क़ है हर वाह इश्क़ है

हर आह-ए-सर्द इश्क़ है हर वाह इश्क़ है

होती है जो भी जुरअत-ए-निगाह इश्क़ है

दरबान बन के सर को झुकाए खड़ी है अक़्ल

दरबार-ए-दिल कि जिस का शहंशाह इश्क़ है

सुन ऐ ग़ुरूर-ए-हुस्न तिरा तज़्किरा है क्या

असरार-ए-काएनात से आगाह इश्क़ है

जब्बार भी रहीम भी क़हहार भी वही

सारे उसी के नाम हैं अल्लाह इश्क़ है

मेहनत का फल है सदक़ा-ओ-ख़ैरात क्यूँ कहें

जीने की हम जो पाते हैं तनख़्वाह इश्क़ है

चेहरे फ़क़त पड़ाव हैं मंज़िल नहीं तिरी

ऐ कारवान-ए-इ'श्क़ तिरी राह इश्क़ है

ऐसे हैं हम तो कोई हमारी ख़ता नहीं

लिल्लाह इश्क़ है हमें वल्लाह इश्क़ है

हों वो 'अमीर-इमाम' कि फ़रहाद-ओ-क़ैस हों

आओ कि हर शहीद की दरगाह इश्क़ है