GHAZAL•
काँधों से ज़िंदगी को उतरने नहीं दिया
By Ameer Imam
काँधों से ज़िंदगी को उतरने नहीं दिया
उस मौत ने कभी मुझे मरने नहीं दिया
पूछा था आज मेरे तबस्सुम ने इक सवाल
कोई जवाब दीदा-ए-तर ने नहीं दिया
तुझ तक मैं अपने आप से हो कर गुज़र गया
रस्ता जो तेरी राह गुज़रने नहीं दिया
कितना अजीब मेरा बिखरना है दोस्तो
मैं ने कभी जो ख़ुद को बिखरने नहीं दिया
है इम्तिहान कौन सा सहरा-ए-ज़िंदगी
अब तक जो तेरे ख़ाक-बसर ने नहीं दिया
यारो 'अमीर' इमाम भी इक आफ़्ताब था
पर उस को तीरगी ने उभरने नहीं दिया