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GHAZAL

पढ़ लेगा कोई रात की रोई हुई आँखें

पढ़ लेगा कोई रात की रोई हुई आँखें

हर सम्त हैं आराम से सोई हुई आँखें

जिन लोगों की मंज़िल पे नज़र होती है हर दम

उन का ही तमाशा हैं ये खोई हुई आँखें

दिन भर तो जमे रहते हैं पलकों पे वही ख़्वाब

क्यों होश में लाती नहीं धोई हुई आँखें

आँखों का जमाल आप को मालूम ही क्या है

देखी हैं कभी रात वो सोई हुई आँखें

कुछ भी न दिखा मोजिज़ा था ही यही 'आमिर'

खोली गईं ज़मज़म से भिगोई हुई आँखें

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