हमने पर्चे आंसुओं से भर दिए
हमने पर्चे आंसुओं से भर दिए
और तुमने इतने कम नंबर दिए

@zubair-ali-tabish
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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हमने पर्चे आंसुओं से भर दिए
और तुमने इतने कम नंबर दिए
जरा ठहरो की शब फीकी बहुत है
तुम्हें घर जाने की जल्दी बहुत है
तुम बड़े अच्छे वक़्त पर आए
आज इक ज़ख़्म की ज़रूरत थी
मैं क़िस्सा मुख़्तसर कर के, ज़रा नीची नज़र कर के
ये कहता हूँ अभी तुम से, मोहब्बत हो गई तुम से
तुम्हारी मौत मेरी ज़िंदगी से बेहतर है
तुम एक बार मरे मैं तो बार बार मरा
वो पास क्या जरा सा मुस्कुरा कर बैठ गया
मैं इस मजाक को दिल से लगा के बैठ गया
बस एक ही दोस्त है दुनिया में अपना
मगर उस से भी झगड़ा चल रहा है
मोहब्बत दो-क़दम पर थक गई थी
मगर ये हिज्र कितना चल रहा है
मैं कहाँ जाऊँ करूँ किस से शिकायत उस की
हर तरफ़ उस के तरफ़-दार नज़र आते हैं।
तेरे ख़त आज लतीफ़ों की तरह लगते हैं
ख़ूब हँसता हूँ जहाँ लफ़्ज-ए-वफ़ा आता है
आख़री हिचकी लेनी है अब आ जाओ
बा’द में तुम को कौन बुलाने वाला है
कितने हसीं हो माशा-अल्लाह
तुम पे मोहब्बत ख़ूब जचेगी
एक ही बार नज़र पड़ती है उन पर ‘ताबिश’
और फिर वो ही लगातार नज़र आते हैं
कोई पागल ही मोहब्बत से नवाज़ेगा मुझे
आप तो ख़ैर समझदार नज़र आते हैं
बिछड़ कर भी हूँ ज़िंदा रहने वाला
तू होता कौन है ये कहने वाला
शायद क़ज़ा ने मुझ को ख़ज़ाना बना दिया
ऐसा नहीं तो क्यूँ मुझे दफ़ना रहे हैं लोग
इस दर का हो या उस दर का हर पत्थर पत्थर है लेकिन
कुछ ने मेरा सर फोड़ा हैं कुछ पर मैं ने सर फोड़ा है
ऊँचे नीचे घर थे बस्ती में बहुत
ज़लज़ले ने सब बराबर कर दिए
पहेली ज़िंदगी की कब तू ऐ नादान समझेगा
बहुत दुश्वारियाँ होंगी अगर आसान समझेगा
बस मैं मायूस होने वाला था
और मौला ने तुझ को भेज दिया