तेरे ख़त आज लतीफ़ों की तरह लगते हैंZubair Ali Tabish@zubair-ali-tabishतेरे ख़त आज लतीफ़ों की तरह लगते हैं ख़ूब हँसता हूँ जहाँ लफ़्ज-ए-वफ़ा आता है