चल दिए फेर कर नज़र तुम भी
चल दिए फेर कर नज़र तुम भी
ग़ैर तो ग़ैर थे मगर तुम भी

@zubair-ali-tabish
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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चल दिए फेर कर नज़र तुम भी
ग़ैर तो ग़ैर थे मगर तुम भी
बस इक निगाह-ए-नाज़ को तरसा हुआ था मैं
हालांकि शहर-शहर में फैला हुआ था मैं
जब वो मेरे शाना-ब-शाना चलता है
पस मंज़र में कोई गाना चलता है
अक़्ल ने अच्छे अच्छों को बहकाया था
शुक्र है हम पर कुछ वहशत का साया था
चल ख़्वाहिश की बात करेंगे
ख़ाली डिश की बात करेंगे
चाँद को दामन में ला कर रख दिया
उसने मेरी गोद में सर रख दिया
तुम्हारा रंग दुनिया ने छुआ था तब कहां थे तुम?
हमारा कैनवस ख़ाली पड़ा था तब कहां थे तुम?
अब मेरे साथ नहीं है समझे ना
समझाने की बात नहीं है समझे ना
एक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है
दिल भटकने में फिर भी माहिर है
दिल फिर उस कूचे में जाने वाला है
बैठे-बिठाए ठोकर खाने वाला है
बैठे-बैठे इक दम से चौंकाती है
याद तिरी कब दस्तक दे कर आती है
तुम्हारे ग़म से तौबा कर रहा हूँ
तअ'ज्जुब है मैं ऐसा कर रहा हूँ
भरे हुए जाम पर सुराही का सर झुका तो बुरा लगेगा
जिसे तेरी आरज़ू नहीं तू उसे मिला तो बुरा लगेगा
वो पास क्या ज़रा सा मुस्कुरा के बैठ गया
मैं इस मज़ाक़ को दिल से लगा के बैठ गया
अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है
तो बस यादों पे ख़र्चा चल रहा है
पहले मुफ़्त में प्यास बटेगी
बा'द में इक-इक बूँद बिकेगी
रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आते हैं
सब तेरी ओढ़नी के तार नज़र आते हैं
वैसे तू मेरे मकाँ तक तो चला आता है
फिर अचानक से तिरे ज़ेहन में क्या आता है
ग़ज़ल तो सबको मीठी लग रही थी
मगर नातिक को मिर्ची लग रही थी
अपने बच्चों से बहुत डरता हूँ मैं
बिल्कुल अपने बाप के जैसा हूँ मैं