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GHAZAL

रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आते हैं

रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आते हैं

सब तेरी ओढ़नी के तार नज़र आते हैं

कोई पागल ही मोहब्बत से नवाज़ेगा मुझे

आप तो ख़ैर समझदार नज़र आते हैं

मैं कहाँ जाऊँ करूँ किस से शिकायत उस की

हर तरफ़ उस के तरफ़-दार नज़र आते हैं

ज़ख़्म भरने लगे हैं पिछली मुलाक़ातों के

फिर मुलाक़ात के आसार नज़र आते हैं

एक ही बार नज़र पड़ती है उन पर 'ताबिश'

और फिर वो ही लगातार नज़र आते हैं

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रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आते हैं — Zubair Ali Tabish • ShayariPage