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GHAZAL

वैसे तू मेरे मकाँ तक तो चला आता है

वैसे तू मेरे मकाँ तक तो चला आता है

फिर अचानक से तिरे ज़ेहन में क्या आता है

आहें भरता हूँ कि पूछे कोई आहों का सबब

फिर तिरा ज़िक्र निकलता है मज़ा आता है

तेरे ख़त आज लतीफ़ों की तरह लगते हैं

ख़ूब हँसता हूँ जहाँ लफ़्ज़-ए-वफ़ा आता है

जाते-जाते ये कहा उस ने चलो आता हूँ

अब यही देखना है जाता है या आता है

तुझ को वैसे तो ज़माने के हुनर आते हैं

प्यार आता है कभी तुझ को बता आता है

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