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पहेली ज़िंदगी की कब तू ऐ नादान समझेगा

पहेली ज़िंदगी की कब तू ऐ नादान समझेगा

बहुत दुश्वारियाँ होंगी अगर आसान समझेगा

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पहेली ज़िंदगी की कब तू ऐ नादान समझेगा — Zubair Ali Tabish • ShayariPage