तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता
तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता
इक तू है जो लफ़्ज़ों में अदा हो नहीं सकता

@waseem-barelvi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता
इक तू है जो लफ़्ज़ों में अदा हो नहीं सकता
उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है
अजीब दिल है गिरूँ तो सँभाल लेता है
सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता
हर आदमी के मुक़द्दर में घर नहीं होता
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
इसी लिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते
तू समझता है कि रिश्तों की दुहाई देंगे
हम तो वो हैं तिरे चेहरे से दिखाई देंगे
कहाँ सवाब कहाँ क्या अज़ाब होता है
मोहब्बतों में कब इतना हिसाब होता है
हवेलियों में मिरी तर्बियत नहीं होती
तो आज सर पे टपकने को छत नहीं होती
ज़िंदगी तुझ पे अब इल्ज़ाम कोई क्या रक्खे
अपना एहसास ही ऐसा है जो तन्हा रक्खे
दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो
वो ज़िंदगी ही नहीं है जो ना-तमाम न हो
मिरी वफ़ाओं का नश्शा उतारने वाला
कहाँ गया मुझे हँस हँस के हारने वाला
कहाँ क़तरे की ग़म-ख़्वारी करे है
समुंदर है अदाकारी करे है
निगाहों के तक़ाज़े चैन से मरने नहीं देते
यहाँ मंज़र ही ऐसे हैं कि दिल भरने नहीं देते
सिर्फ़ तेरा नाम ले कर रह गया
आज दीवाना बहुत कुछ कह गया
रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए
मेरी आँखों से जो दुनिया तुझे देखा जाए
सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ
कितना बड़ा मज़ाक़ हुआ रौशनी के साथ
भागते सायों के पीछे ता-ब-कै दौड़ा करें
ज़िंदगी तू ही बता कब तक तिरा पीछा करें
चाँद का ख़्वाब उजालों की नज़र लगता है
तू जिधर हो के गुज़र जाए ख़बर लगता है
उसूलों पर जहाँ आँच आए टकराना ज़रूरी है
जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है
जहां दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है
कोई उठता है और तूफ़ान का रुख़ मोड़ देता है
लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता
हमारे दौर में आँसू ज़बाँ नहीं होता