रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए

रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए

मेरी आँखों से जो दुनिया तुझे देखा जाए

हम ने जिस राह को छोड़ा फिर उसे छोड़ दिया

अब न जाएँगे उधर चाहे ज़माना जाए

मैं ने मुद्दत से कोई ख़्वाब नहीं देखा है

हाथ रख दे मिरी आँखों पे कि नींद आ जाए

मैं गुनाहों का तरफ़-दार नहीं हूँ फिर भी

रात को दिन की निगाहों से न देखा जाए

कुछ बड़ी सोचों में ये सोचें भी शामिल हैं 'वसीम'

किस बहाने से कोई शहर जलाया जाए