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GHAZAL

जहां दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है

जहां दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है

कोई उठता है और तूफ़ान का रुख़ मोड़ देता है

मुझे बे-दस्त-ओ-पा कर के भी ख़ौफ़ उस का नहीं जाता

कहीं भी हादिसा गुज़रे वो मुझ से जोड़ देता है

बिछड़ के तुझ से कुछ जाना अगर तो इस क़दर जाना

वो मिट्टी हूंजिसे दरिया किनारे छोड़ देता है

मोहब्बत में ज़रा सी बेवफ़ाई तो ज़रूरी है

वही अच्छा भी लगता है जो वादे तोड़ देता है

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