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GHAZAL

सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ

सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ

कितना बड़ा मज़ाक़ हुआ रौशनी के साथ

शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ

कीजे मुझे क़ुबूल मेरी हर कमी के साथ

तेरा ख़याल तेरी तलब तेरी आरज़ू

मैं उम्र भर चला हूँ किसी रौशनी के साथ

दुनिया मेरे ख़िलाफ़ खड़ी कैसे हो गई

मेरी तो दुश्मनी भी नहीं थी किसी के साथ

किस काम की रही ये दिखावे की ज़िंदगी

वादे किए किसी से गुज़ारी किसी के साथ

दुनिया को बेवफ़ाई का इल्ज़ाम कौन दे

अपनी ही निभ सकी न बहुत दिन किसी के साथ

क़तरे वो कुछ भी पाएँ ये मुमकिन नहीं 'वसीम'

बढ़ना जो चाहते हैं समंदर-कशी के साथ

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