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GHAZAL

उसूलों पर जहाँ आँच आए टकराना ज़रूरी है

उसूलों पर जहाँ आँच आए टकराना ज़रूरी है

जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है

नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये

कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटें

सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है

बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता

मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का

जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है

मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो

कि इसके बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है

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उसूलों पर जहाँ आँच आए टकराना ज़रूरी है — Waseem Barelvi • ShayariPage