क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता
क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता
आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता

@waseem-barelvi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता
आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता
वही लिखता हूँ जो लिखने को कहा जाता है
बस समझदारों के पढ़ने में नहीं आता है
ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है
समुंदरों ही के लहजे में बात करता है
अंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है
किसी का ध्यान आता है उजाला होने लगता है
मैं आसमाँ पे बहुत देर रह नहीं सकता
मगर ये बात ज़मीं से तो कह नहीं सकता
अपने साए को इतना समझाने दे
मुझ तक मेरे हिस्से की धूप आने दे
अपने अंदाज़ का अकेला था
इस लिए मैं बड़ा अकेला था
कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी
तुझ से ही फ़ासला रखना तुझे अपनाना भी
ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है
इस एक बात पे दुनिया से जंग जारी है
शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं
दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है
डूब के देखो कितना प्यासा लगता है
मेरे ग़म को जो अपना बताते रहे
वक़्त पड़ने पे हाथों से जाते रहे
मुझे तो क़तरा ही होना बहुत सताता है
इसी लिए तो समुंदर पे रहम आता है
कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो
वो ए'तिबार दिलाए और ए'तिबार न हो
चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो
कोई रिश्ता ज़रा सी ज़िद की ख़ातिर राएगाँ क्यूँ हो
मैं ये नहीं कहता कि मिरा सर न मिलेगा
लेकिन मिरी आँखों में तुझे डर न मिलेगा
वो मुझ को क्या बताना चाहता है
जो दुनिया से छुपाना चाहता है
हम अपने आप को इक मसअला बना न सके
इसी लिए तो किसी की नज़र में आ न सके
नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया
हमें किसी से निभाना भी तो नहीं आया
क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया
उम्र-भर किस किस के हिस्से का सफ़र मैं ने किया