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GHAZAL

अपने साए को इतना समझाने दे

अपने साए को इतना समझाने दे

मुझ तक मेरे हिस्से की धूप आने दे

एक नज़र में कई ज़माने देखे तो

बूढ़ी आँखों की तस्वीर बनाने दे

बाबा दुनिया जीत के मैं दिखला दूँगा

अपनी नज़र से दूर तो मुझ को जाने दे

मैं भी तो इस बाग़ का एक परिंदा हूँ

मेरी ही आवाज़ में मुझ को गाने दे

फिर तो ये ऊँचा ही होता जाएगा

बचपन के हाथों में चाँद आ जाने दे

फ़स्लें पक जाएँ तो खेत से बिछ्ड़ेंगी

रोती आँख को प्यार कहाँ समझाने दे

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अपने साए को इतना समझाने दे — Waseem Barelvi • ShayariPage