Shayari Page
GHAZAL

नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया

नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया

हमें किसी से निभाना भी तो नहीं आया

जला के रख लिया हाथों के साथ दामन तक

तुम्हें चराग़ बुझाना भी तो नहीं आया

नए मकान बनाए तो फ़ासलों की तरह

हमें ये शहर बसाना भी तो नहीं आया

वो पूछता था मिरी आँख भीगने का सबब

मुझे बहाना बनाना भी तो नहीं आया

'वसीम' देखना मुड़ मुड़ के वो उसी की तरफ़

किसी को छोड़ के जाना भी तो नहीं आया

Comments

Loading comments…
नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया — Waseem Barelvi • ShayariPage