वही लिखता हूँ जो लिखने को कहा जाता है
वही लिखता हूँ जो लिखने को कहा जाता है
बस समझदारों के पढ़ने में नहीं आता है
क्यूँ भला गहरे हरे वन मेरा मन खींचते हैं
क्या मेरा वाकई कुदरत से कोई नाता है
जब किसी और में कुछ ढूंढती है मेरी निगाह
एकदम से तू मेरे सामने आ जाता है