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GHAZAL

तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता

तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता

इक तू है जो लफ़्ज़ों में अदा हो नहीं सकता

आँखों में ख़यालात में साँसों में बसा है

चाहे भी तो मुझ से वो जुदा हो नहीं सकता

जीना है तो ये जब्र भी सहना ही पड़ेगा

क़तरा हूँ समुंदर से ख़फ़ा हो नहीं सकता

गुमराह किए होंगे कई फूल से जज़्बे

ऐसे तो कोई राह-नुमा हो नहीं सकता

क़द मेरा बढ़ाने का उसे काम मिला है

जो अपने ही पैरों पे खड़ा हो नहीं सकता

ऐ प्यार तिरे हिस्से में आया तिरी क़िस्मत

वो दर्द जो चेहरों से अदा हो नहीं सकता

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