ख़ौफ़ तेरे ज़िक्र के दौरान ग़ायब हो गया
ख़ौफ़ तेरे ज़िक्र के दौरान ग़ायब हो गया
ज़ेहन से कुछ पल को क़ब्रिस्तान ग़ायब हो गया

@shariq-kaifi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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ख़ौफ़ तेरे ज़िक्र के दौरान ग़ायब हो गया
ज़ेहन से कुछ पल को क़ब्रिस्तान ग़ायब हो गया
कुछ एक तरफ़ ध्यान ज़ियादा है किसी का
लगता है कि दिल टूटने वाला है किसी का
अब किसे याद किस धुन में गुज़रा था पिछला ज़माना मेरा
उड़ने वाली सियाही से लिक्खा गया था फ़साना मेरा
पता है आश्ना दुनिया है तुम से
मगर मेरा भी कुछ रिश्ता है तुम से
तिरी तरफ़ से तो हाँ मान कर ही चलना है
कि सारा खेल इस उम्मीद पर ही चलना है
ख़याल सा है कि तू सामने खड़ा था अभी
ग़ुनूदगी में हूँ शायद मैं सौ गया था अभी
रोज़ का इक मश्ग़ला कुछ देर का
उस गली का रास्ता कुछ देर का
सूना आँगन नींद में ऐसे चौंक उठा है
सोते में भी जैसे कोई सिसकी लेता है
कोई कुछ भी कहता रहे सब ख़ामोशी से सुन लेता है
उस ने भी अब गहरी गहरी साँसें लेना सीख लिया है
तरह तरह से मिरा दिल बढ़ाया जाता है
मगर कहे से कहीं मुस्कुराया जाता है
उदास हैं सब पता नहीं घर में क्या हुआ है
हमारा इतना ख़याल क्यूँ रक्खा जा रहा है
होने से मिरे फ़र्क़ ही पड़ता था भला क्या
मैं आज न जागा तो सवेरा न हुआ क्या
तन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगा
मेरे अश्कों में तिरा हिस्सा रहेगा
गुज़र रहा है वो लम्हा तो याद आया है
उस एक पल से कभी कितना ख़ौफ़ खाया है
हाथ आता तो नहीं कुछ प तक़ाज़ा कर आएँ
और इक बार गली का तिरी फेरा कर आएँ
कभी ख़ुद को छूकर नहीं देखता हूँ
ख़ुदा जाने बस वहम में मुब्तला हूँ
रात बे-पर्दा सी लगती है मुझे
ख़ौफ़ ने ऐसी नज़र दी है मुझे
सफ़र से मुझ को बद-दिल कर रहा था
भँवर का काम साहिल कर रहा था
मुमकिन ही न थी ख़ुद से शनासाई यहाँ तक
ले आया मुझे मेरा तमाशाई यहाँ तक
बड़ा है दुख सो हासिल है ये आसानी मुझे
कि हिम्मत ही नहीं कुछ याद करने की मुझे