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GHAZAL

तरह तरह से मिरा दिल बढ़ाया जाता है

तरह तरह से मिरा दिल बढ़ाया जाता है

मगर कहे से कहीं मुस्कुराया जाता है

अभी मैं सोच रहा था कि कुछ कहूँ तुझ से

कि देखता हूँ तिरा घर सजाया जाता है

गुनाहगारों में बैठे तो इंकिशाफ़ हुआ

ख़ुदा से अब भी बहुत ख़ौफ़ खाया जाता है

नए नए वो अदाकार जानते ही न थे

कि पर्दा गिरते ही सब भूल जाया जाता है

तवक़्क़ुआत का यूँ भी ख़याल रखता हूँ

बड़े यक़ीं से मुझे आज़माया जाता है

तमाम उम्र मिलाई जुनूँ की ताल से ताल

ये गीत सब से कहाँ गुनगुनाया जाता है

अब इस तरह की मोहब्बत कभी न हो शायद

कि दरमियाँ में कहीं जिस्म आया जाता है

समझ में आए न आए ये कुछ हुआ है ज़रूर

यक़ीं जो तुझ पे मिरा डगमगाया जाता है

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तरह तरह से मिरा दिल बढ़ाया जाता है — Shariq Kaifi • ShayariPage