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GHAZAL

ख़ौफ़ तेरे ज़िक्र के दौरान ग़ायब हो गया

ख़ौफ़ तेरे ज़िक्र के दौरान ग़ायब हो गया

ज़ेहन से कुछ पल को क़ब्रिस्तान ग़ायब हो गया

मिल गया मिलना ही था आख़िर बदल तेरा मगर

घर बदलने में बहुत सामान ग़ायब हो गया

इस क़दर गहरा घना कोहरा था उसके हिज्र का

यार मेरा खेल का मैदान ग़ायब हो गया

वक़्त धुँधलाता गया हर याद और फिर एक दिन

हर बहीखाते से वो नुक़सान ग़ायब हो गया

थी मेरी दुनिया किसी शादी के मंडप की तरह

इक मिला तो दूसरा मेहमान ग़ायब हो गया

मर गया होता तो अब तक सब्र आ जाता हमें

क्या करें उस का कि जो इंसान ग़ायब हो गया

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ख़ौफ़ तेरे ज़िक्र के दौरान ग़ायब हो गया — Shariq Kaifi • ShayariPage