ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है
ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है
हमें इक दूसरा अच्छा लगा है

@shariq-kaifi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
Followers
0
Content
105
Likes
0
ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है
हमें इक दूसरा अच्छा लगा है
ख़मोशी बस ख़मोशी थी इजाज़त अब हुई है
इशारों को तिरे पढ़ने की जुरअत अब हुई है
जो कहता है कि दरिया देख आया
ग़लत मौसम में सहरा देख आया
इंतिहा तक बात ले जाता हूँ मैं
अब उसे ऐसे ही समझाता हूँ मैं
ये चुपके चुपके न थमने वाली हँसी तो देखो
वो साथ है तो ज़रा हमारी ख़ुशी तो देखो
कहीं न था वो दरिया जिस का साहिल था मैं
आँख खुली तो इक सहरा के मुक़ाबिल था मैं
सच तो बैठ के खाता है
झूठ कमा कर लाता है
रोना-धोना सिर्फ़ दिखावा होता है
कौन मिरे जाने से तन्हा होता है
अच्छा तो तुम ऐसे थे
दूर से कैसे लगते थे
सब आसान हुआ जाता है
मुश्किल वक़्त तो अब आया है
झूट पर उस के भरोसा कर लिया
धूप इतनी थी कि साया कर लिया
आइने का साथ प्यारा था कभी
एक चेहरे पर गुज़ारा था कभी
इक दिन ख़ुद को अपने पास बिठाया हम ने
पहले यार बनाया फिर समझाया हम ने
हमीं तक रह गया क़िस्सा हमारा
किसी ने ख़त नहीं खोला हमारा