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GHAZAL

सच तो बैठ के खाता है

सच तो बैठ के खाता है

झूठ कमा कर लाता है

याद भी कोई आता है

याद तो रक्ख जाता है

जैसे लफ़्ज़ हों वैसा ही

मुंह का मज़ा हो जाता है

फिर दुश्मन बढ़ जाएंगे

किस को दोस्त बनाता है

कैसी ख़ुश्क हवाएं हैं

सुब्ह से दिन चढ़ जाता है

उसे घटा कर दुनिया में

बाक़ी क्या रह जाता है

जाने वो इस चेहरे पर

किस का धोका खाता है

इश्क़ से बढ़ कर कौन हमें

दुनियादार बनाता है

दिल जैसा मासूम भी आज

अपनी अक़्ल चलाता है

कुछ तो है जो सिर्फ़ यहां

मेरी समझ में आता है

मुश्किल सुन ली जाती है

कोई करम फ़रमाता है

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