Shayari Page
GHAZAL

सब आसान हुआ जाता है

सब आसान हुआ जाता है 

मुश्किल वक़्त तो अब आया है 

जिस दिन से वो जुदा हुआ है 

मैं ने जिस्म नहीं पहना है 

कोई दराड़ नहीं है शब में 

फिर ये उजाला सा कैसा है 

बरसों का बछड़ा हुआ साया 

अब आहट ले कर लौटा है 

अपने आप से डरने वाला 

किस पे भरोसा कर सकता है 

एक महाज़ पे हारे हैं हम 

ये रिश्ता क्या कम रिश्ता है 

क़ुर्ब का लम्हा तो यारों को 

चुप करने में गुज़र जाता है 

सूरज से शर्तें रखता हूँ 

घर में चराग़ नहीं जलता है 

दुख की बात तो ये है 'शारिक़' 

उस का वहम भी सच निकला है 

बरसों का बछड़ा हुआ साया 

अब आहट ले कर लौटा है 

अपने आप से डरने वाला 

किस पे भरोसा कर सकता है 

एक महाज़ पे हारे हैं हम 

ये रिश्ता क्या कम रिश्ता है 

क़ुर्ब का लम्हा तो यारों को 

चुप करने में गुज़र जाता है 

सूरज से शर्तें रखता हूँ 

घर में चराग़ नहीं जलता है 

दुख की बात तो ये है 'शारिक़' 

उस का वहम भी सच निकला है .

Comments

Loading comments…