GHAZAL•
अब किसे याद किस धुन में गुज़रा था पिछला ज़माना मेरा
By Shariq Kaifi
अब किसे याद किस धुन में गुज़रा था पिछला ज़माना मेरा
उड़ने वाली सियाही से लिक्खा गया था फ़साना मेरा
तुम नहीं जानते यकतरफ़ा मुहब्बत की महरूमियाँ
तुमने देखा नही अपनी नज़रों से ख़ुद को छुपाना मेरा
फिर तुम्हारे बराबर खड़ा शख़्स कुछ इस तरह से हँसा
जैसे तुमने बताया हो उस को है ये भी दीवाना मेरा
अब बहुत तेज़ थी गूँज शहनाइयों की वो सुनता भी क्या
इक ग़लत फ़ैसला था उसे उस घड़ी आज़माना मेरा
बस तुझे भूल जाने का डर था जो ये सब कराता रहा
वरना क्या था तेरे शहर तक जा के बस लौट आना मेरा