"अकेले"
"अकेले"
किस क़दर सीधा, सहल, साफ़ है रस्ता देखो

@gulzar
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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"अकेले"
किस क़दर सीधा, सहल, साफ़ है रस्ता देखो
वो जो शायर था
वो जो शायर था चुप-सा रहता था
"दो सौंधे सौंधे से जिस्म जिस वक़्त"
दो सौंधे सौंधे से जिस्म जिस वक़्त
अजीब सा अमल है ये
ये एक फ़र्ज़ी गुफ़्तगू,
एक बौछार था वो शख्स,
बिना बरसे किसी अब्र की सहमी सी नमी से
देखो, आहिस्ता चलो और भी आहिस्ता ज़रा
देखना, सोच-संभल कर ज़रा पांव रखना
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्तां आगे और भी है
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
क्या लिये जाते हो तुम कन्धों पे यारो
इस जनाज़े में तो कोई भी नहीं है,
दिल में ऐसे ठहर गए हैं ग़म
जैसे जंगल में शाम के साये
मुझको इतने से काम पे रख लो
जब भी सीने में झूलता लॉकेट
नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होंटों पर
वो पुल की सातवीं सीढ़ी पे बैठा कहता रहता था
किसी थैले में भर के गर ख़याल अपने
वक़्त को आते न जाते न गुज़रते देखा
न उतरते हुए देखा कभी इल्हाम की सूरत
कहीं कुछ दूर से कानों में पड़ती है उर्दू
तो लगता है,
याद है एक दिन?
मेरी मेज़ पे बैठे-बैठे
मैं सिगरेट तो नहीं पीता
मगर हर आने वाले से पूछ लेता हूँ कि "माचिस है?"