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"दो सौंधे सौंधे से जिस्म जिस वक़्त"

"दो सौंधे सौंधे से जिस्म जिस वक़्त"

दो सौंधे सौंधे से जिस्म जिस वक़्त

एक मुट्ठी में सो रहे थे

लबों की मद्धम तवील सरगोशियों में साँसें उलझ गई थीं

मुँदे हुए साहिलों पे जैसे कहीं बहुत दूर

ठंडा सावन बरस रहा था

बस एक रूह ही जागती थी

बता तू उस वक़्त मैं कहाँ था?

बता तू उस वक़्त तू कहाँ थी?

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