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NAZM

वो पुल की सातवीं सीढ़ी पे बैठा कहता रहता था

वो पुल की सातवीं सीढ़ी पे बैठा कहता रहता था

किसी थैले में भर के गर ख़याल अपने

मैं दरवाज़े पे हरकारे की सूरत जा के पहुँचाता

चमकती बूँदें बारिश की किसी की जेब में भर के

गले में बादलों का एक मफ़लर डाल कर आता

वो भीगा भीगा सा रहता

किसी के कान में दो बालियों से चाँद पहनाता

मछेरों की कोई लड़की अगर मिलती

गरजते बादलों को बाँध कर बालों के जोड़े में

धनक की बीनी दे आता

मुझे गर कहकशाँ को बाँटने का हक़ दिया होता ख़ुदा ने तो

कोई फ़ुटपाथ से बोला

ऐ औलाद शाइ'र की

बहुत खाई हैं रूखी रोटियाँ मैं ने

जो ला सकता है तो इक बार कुछ सालन ही ला कर दे

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वो पुल की सातवीं सीढ़ी पे बैठा कहता रहता था — Gulzar • ShayariPage