कभी कभी याद में उभरते हैं नक़्श-ए-माज़ी मिटे मिटे से
कभी कभी याद में उभरते हैं नक़्श-ए-माज़ी मिटे मिटे से
वो आज़माइश दिल ओ नज़र की वो क़ुर्बतें सी वो फ़ासले से

@faiz-ahmad-faiz
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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कभी कभी याद में उभरते हैं नक़्श-ए-माज़ी मिटे मिटे से
वो आज़माइश दिल ओ नज़र की वो क़ुर्बतें सी वो फ़ासले से
ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलम
तिरा हुस्न दस्त-ए-ईसा तिरी याद रू-ए-मर्यम
इश्क़ मिन्नत-कश-ए-क़रार नहीं
हुस्न मजबूर-ए-इंतिज़ार नहीं
ये किस ख़लिश ने फिर इस दिल में आशियाना किया
फिर आज किस ने सुख़न हम से ग़ाएबाना किया
फिर हरीफ़-ए-बहार हो बैठे
जाने किस किस को आज रो बैठे
हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी
ज़ब्त का हौसला नहीं बाक़ी
हम ने सब शेर में सँवारे थे
हम से जितने सुख़न तुम्हारे थे
तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गए
तिरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए
तिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से है
न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से है
आज यूँ मौज-दर-मौज ग़म थम गया इस तरह ग़म-ज़दों को क़रार आ गया
जैसे ख़ुश-बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-बहार आ गई जैसे पैग़ाम-ए-दीदार-ए-यार आ गया
वफ़ा-ए-वादा नहीं वादा-ए-दिगर भी नहीं
वो मुझ से रूठे तो थे लेकिन इस क़दर भी नहीं
अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें
दिल ठहरे तो दर्द सुनाएँ दर्द थमे तो बात करें
हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए
काफ़िरों की नमाज़ हो जाए
अब वही हर्फ़-ए-जुनूँ सब की ज़बाँ ठहरी है
जो भी चल निकली है वो बात कहाँ ठहरी है
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के बा'द आए जो अज़ाब आए
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
'आप की याद आती रही रात भर''
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है
दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है
तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है
तलाश में है सहर बार बार गुज़री है