ये किस ख़लिश ने फिर इस दिल में आशियाना किया

ये किस ख़लिश ने फिर इस दिल में आशियाना किया

फिर आज किस ने सुख़न हम से ग़ाएबाना किया


ग़म-ए-जहाँ हो रुख़-ए-यार हो कि दस्त-ए-अदू

सुलूक जिस से किया हम ने आशिक़ाना किया


थे ख़ाक-ए-राह भी हम लोग क़हर-ए-तूफ़ाँ भी

सहा तो क्या न सहा और किया तो क्या न किया


ख़ुशा कि आज हर इक मुद्दई के लब पर है

वो राज़ जिस ने हमें राँदा-ए-ज़माना किया


वो हीला-गर जो वफ़ा-जू भी है जफ़ा-ख़ू भी

किया भी 'फ़ैज़' तो किस बुत से दोस्ताना किया