इश्क़ मिन्नत-कश-ए-क़रार नहीं

इश्क़ मिन्नत-कश-ए-क़रार नहीं

हुस्न मजबूर-ए-इंतिज़ार नहीं


तेरी रंजिश की इंतिहा मालूम

हसरतों का मिरी शुमार नहीं


अपनी नज़रें बिखेर दे साक़ी

मय ब-अंदाज़ा-ए-ख़ुमार नहीं


ज़ेर-ए-लब है अभी तबस्सुम-ए-दोस्त

मुंतशिर जल्वा-ए-बहार नहीं


अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं

वर्ना तुझ से तो मुझ को प्यार नहीं


चारा-ए-इंतिज़ार कौन करे

तेरी नफ़रत भी उस्तुवार नहीं


'फ़ैज़' ज़िंदा रहें वो हैं तो सही

क्या हुआ गर वफ़ा-शिआर नहीं