आए कुछ अब्र कुछ शराब आए

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए

इस के बा'द आए जो अज़ाब आए


बाम-ए-मीना से माहताब उतरे

दस्त-ए-साक़ी में आफ़्ताब आए


हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो

सामने फिर वो बे-नक़ाब आए


उम्र के हर वरक़ पे दिल की नज़र

तेरी मेहर-ओ-वफ़ा के बाब आए


कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब

आज तुम याद बे-हिसाब आए


न गई तेरे ग़म की सरदारी

दिल में यूँ रोज़ इंक़लाब आए


जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम

जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए


इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी

गोया हर सम्त से जवाब आए


'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िल

हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए