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Shayari

इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं हाँ ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई"सफ़र के वक़्त"अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँपहले-पहल लड़ेंगे तमस्ख़ुर उड़ाएँगे अदा-ए-इश्क़ हूँ पूरी अना के साथ हूँ मैं अदा-ए-इश्क़ हूँ पूरी अना के साथ हूँ मैं वैसे तू मेरे मकाँ तक तो चला आता हैख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहलेख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील ये पयाम दे गई है मुझे बाद-ए-सुब्ह-गाही एजाज़ है किसी का या गर्दिश-ए-ज़माना निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है चिश्ती ने जिस ज़मीं में पैग़ाम-ए-हक़ सुनाया ख़ुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता हैकितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी हम अपने आप को इक मसअला बना न सके दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आतावो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का हैअगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी केअगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का वो जो कहलाता था दीवाना तिरा गर्मी-ऐ-शौक़-ऐ-नज़ारा का असर तो देखो तुम अगर सीखना चाहो मुझे बतला देनाहम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम हैग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा ये बुत जो हम ने दोबारा बना के रक्खा हैअना हवस की दुकानों में आ के बैठ गईथकन को ओढ़ के बिस्तर में जा के लेट गएख़फ़ा होना ज़रा सी बात पर तलवार हो जाना देख कैसे धुल गए है गिर्या-ओ-ज़ारी के बाद ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होताकोई किसी की तरफ़ है कोई किसी की तरफ़कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर तिरी तरफ़ से तो हाँ मान कर ही चलना हैसियाने थे मगर इतने नहीं हमख़ार-ओ-ख़स तो उठें रास्ता तो चले ख़ार-ओ-ख़स तो उठें रास्ता तो चले इक हुनर था कमाल था क्या था शब वही लेकिन सितारा और है ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगेइक हुनर था कमाल था क्या थादेख कर जोबन तिरा किस किस को हैरानी हुई मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं ख़ुदा अलीगढ़ के मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं मेरी उंगलियों में पड़ गई है गिरहें तेरे गेसुओं कीचलते चलते ये गली बे-जान होती जाएगी चलते चलते ये गली बे-जान होती जाएगी