चलते चलते ये गली बे-जान होती जाएगी

चलते चलते ये गली बे-जान होती जाएगी

रात होती जाएगी सुनसान होती जाएगी


देखना क्या है नज़र-अंदाज़ करना है किसे

मंज़रों की ख़ुद-ब-ख़ुद पहचान होती जाएगी


उस के चेहरे पर मुसलसल आँख रुक सकती नहीं

आँख बार-ए-हुस्न से हलकान होती जाएगी


सोच लो ये दिल-लगी भारी न पड़ जाए कहीं

जान जिस को कह रहे हो जान होती जाएगी


कर ही क्या सकती है दुनिया और तुझ को देख कर

देखती जाएगी और हैरान होती जाएगी


काकुल-ए-ख़मदार में ख़म और आते जाएँगे

ज़ुल्फ़ उस की और भी शैतान होती जाएगी


आते आते इश्क़ करने का हुनर आ जाएगा

रफ़्ता-रफ़्ता ज़िंदगी आसान होती जाएगी


जा चुकीं ख़ुशियाँ तो अब ग़म हिजरतें करने लगे

दिल की बस्ती इस तरह वीरान होती जाएगी