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GHAZAL

तुम अगर सीखना चाहो मुझे बतला देना

तुम अगर सीखना चाहो मुझे बतला देना

आम सा फ़न तो कोई है नहीं तोहफ़ा देना

एक ही शख़्स है जिसको ये हुनर आता है

रूठ जाने पे फ़ज़ा और भी महका देना

हुस्न दुनिया मे इसी काम को भेजा गया है

के जहाँ आग लगी हो उसे भड़का देना

उन बुजुर्गो का यही काम हुआ करता था

जहाँ ख़ूबी नज़र आई उसे चमका देना

दिल बताता है मुझे अक्ल की बातें क्या क्या

बंदा पूछे के तेरा है कोई लेना देना

और कुछ याद न रहता था लड़ाई में उसे

हाँ मगर मेरे गुजिश्ता का हवाला देना

उसकी फ़ितरत में न था तर्क-ए-तअल्लुक़ लेकिन

दूसरे शख़्स को इस नहद पे पहुँचा देना

जानता था कि बहुत खाक उड़ाएगा मेरी

कोई आसान नहीं था उसे रस्ता देना

क्या पता ख़ुद से छिड़ी जंग कहाँ ले जाए

जब भी याद आऊँ मेरी जान का सदका देना

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तुम अगर सीखना चाहो मुझे बतला देना — Jawwad Sheikh • ShayariPage