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GHAZAL

सियाने थे मगर इतने नहीं हम

सियाने थे मगर इतने नहीं हम

ख़मोशी की ज़बाँ समझे नहीं हम

अना की बात अब सुनना पड़ेगी

वो क्या सोचेगा जो रूठे नहीं हम

अधूरी लग रही है जीत उस को

उसे हारे हुए लगते नहीं हम

हमें तो रोक लो उठने से पहले

पलट कर देखने वाले नहीं हम

बिछड़ने का तिरे सदमा तो होगा

मगर इस ख़ौफ़ को जीते नहीं हम

तिरे रहते तो क्या होते किसी के

तुझे खो कर भी दुनिया के नहीं हम

ये मंज़िल ख़्वाब ही रहती हमेशा

अगर घर लौट कर आते नहीं हम

कभी सोचे तो इस पहलू से कोई

किसी की बात क्यूँ सुनते नहीं हम

अभी तक मश्वरों पर जी रहे हैं

किसी सूरत बड़े होते नहीं हम

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