हम तो कितनों को मह-जबीं कहते
हम तो कितनों को मह-जबीं कहते
आप हैं इस लिए नहीं कहते

@gulzar
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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हम तो कितनों को मह-जबीं कहते
आप हैं इस लिए नहीं कहते
दिखाई देते हैं धुँद में जैसे साए कोई
मगर बुलाने से वक़्त लौटे न आए कोई
सहमा सहमा डरा सा रहता है
जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है
फूलों की तरह लब खोल कभी
ख़ुशबू की ज़बाँ में बोल कभी
तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए
कुछ भँवर डूब गए पानी में चकराते हुए
शाम से आज सांस भारी है
बे-क़रारी सी बे-क़रारी है
हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए
दो दिन की ज़िंदगी में हज़ारों बरस जिए
वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था
बीते रिश्ते तलाश करती है
ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है
बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद
कोई साज़िश छुपा रहा है चाँद
आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ
उठता तो है घटा सा बरसता नहीं धुआँ
सब्र हर बार इख़्तियार किया
हम से होता नहीं हज़ार किया
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
एक पर्वाज़ दिखाई दी है
तेरी आवाज़ सुनाई दी है
ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता
मेरी तस्वीर भी गिरती तो छनाका होता
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
दर्द हल्का है साँस भारी है
जिए जाने की रस्म जारी है
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसाँ उतारता है कोई