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GHAZAL

एक पर्वाज़ दिखाई दी है

एक पर्वाज़ दिखाई दी है

तेरी आवाज़ सुनाई दी है

सिर्फ़ इक सफ़्हा पलट कर उस ने

सारी बातों की सफ़ाई दी है

फिर वहीं लौट के जाना होगा

यार ने कैसी रिहाई दी है

जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ

उस ने सदियों की जुदाई दी है

ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहीं

दिल ने हर चीज़ पराई दी है

आग में क्या क्या जला है शब भर

कितनी ख़ुश-रंग दिखाई दी है

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