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GHAZAL

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

जैसे एहसाँ उतारता है कोई

दिल में कुछ यूँ सँभालता हूँ ग़म

जैसे ज़ेवर सँभालता है कोई

आइना देख कर तसल्ली हुई

हम को इस घर में जानता है कोई

पेड़ पर पक गया है फल शायद

फिर से पत्थर उछालता है कोई

देर से गूँजते हैं सन्नाटे

जैसे हम को पुकारता है कोई

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दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई — Gulzar • ShayariPage