सितारे और क़िस्मत देख कर घर से निकलते हैं
सितारे और क़िस्मत देख कर घर से निकलते हैं
जो बुज़दिल हैं मुहूरत देखकर घर से निकलते हैं

@abrar-kashif
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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सितारे और क़िस्मत देख कर घर से निकलते हैं
जो बुज़दिल हैं मुहूरत देखकर घर से निकलते हैं
दिया जला के सभी बाम-ओ-दर में रखते हैं
और एक हम हैं इसे रह-गुज़र में रखते हैं
दर्द-ए-मुहब्बत दर्द-ए-जुदाई दोनों को इक साथ मिला
तू भी तन्हा मैं भी तन्हा आ इस बात पे हाथ मिला
मैं अपने दोनों तरफ़ एक सा हूँ तेरे लिए
किसी से शर्त लगा फिर मुझे उछाल के देख
तरीक़े और भी हैं इस तरह परखा नहीं जाता
चराग़ों को हवा के सामने रक्खा नहीं जाता
अपने दिल में बसाओगे हमको
और गले से लगाओगे हमको
करती है तो करने दे हवाओं को शरारत
मौसम का तकाज़ा है कि बालों को खुला छोड़
अब के हम तर्क-ए-रसूमात करके देखते हैं
बीच वालों के बिना बात करके देखते हैं
मेरा अरमान मेरी ख़्वाहिश नहीं है
ये दुनिया मेरी फ़रमाइश नहीं है
हर एक लफ़्ज़ के तेवर ही और होते हैं
तेरे नगर के सुख़नवर ही और होते हैं
घर की तक़सीम में अँगनाई गँवा बैठे हैं
फूल गुलशन से शनासाई गँवा बैठे हैं
दिन में मिल लेते कहीं रात ज़रूरी थी क्या?
बेनतीजा ये मुलाक़ात ज़रूरी थी क्या
अब तो लगता है कि आ जाएगी बारी मेरी
किसने दे दी तेरी आँखों को सुपारी मेरी
मंज़िलों का कौन जाने रहगुज़र अच्छी नहीं
उसकी आँखें ख़ूबसूरत है नज़र अच्छी नहीं
अगर तुम हो तो घबराने की कोई बात थोड़ी है
ज़रा सी बूँदा-बाँदी है बहुत बरसात थोड़ी है