नेवला और सांप दोनों लड़ते लड़ते थक गए
नेवला और सांप दोनों लड़ते लड़ते थक गए
इक तमाशा कर के सब पैसे मदारी ले गया

@mehshar-afridi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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नेवला और सांप दोनों लड़ते लड़ते थक गए
इक तमाशा कर के सब पैसे मदारी ले गया
क़सम ख़ुदा की बड़े तजरबे से कहता हूँ
गुनाह करने में लज़्ज़त तो है सुकून नहीं
ज़मीं पे घर बनाया है मगर जन्नत में रहते हैं
हमारी ख़ुश-नसीबी है कि हम भारत में रहते हैं
अपने मे'यार से नीचे तो मैं आने से रहा
शेर भूखा हूँ मगर घास तो खाने से रहा
मैं अगर अपनी जवानी के सुना दूँ क़िस्से
ये जो लौंडे हैं मेरे पाँव दबाने लग जाए
उसी को हमसफ़र करना पड़ेगा
नहीं तो दूर तक ख़ाली सड़क है
तेरे बग़ैर ही अच्छे थे क्या मुसीबत है
ये कैसा प्यार है हर दिन जताना पड़ता है
दिल ये करता है कि इस उम्र की पगडंडी पर
उलटे पैरों से चलूँ फिर वही लड़का हो जाऊँ
तेरी ख़ता नहीं जो तू ग़ुस्से में आ गया
पैसे का ज़ो'म था तेरे लहजे में आ गया
ऐसे हालात से मजबूर बशर देखे हैं
अस्ल क्या सूद में बिकते हुए घर देखे हैं
मैं न कहता था हिज्र कुछ भी नहीं
ख़ुद को हलकान कर रही थी तुम
सबसे बेज़ार हो गया हूँ मैं
ज़ेहनी बीमार हो गया हूँ मैं
जगह की क़ैद नहीं थी कोई कहीं बैठे
जहाँ मक़ाम हमारा था हम वहीं बैठे
दबी कुचली हुई सब ख़्वाहिशों के सर निकल आए
ज़रा पैसा हुआ तो च्यूँटियों के पर निकल आए
तेरे वादे से प्यार है लेकिन
अपनी उम्मीद से नफ़रत है
तुमको हिचकी लेने से भी दिक़्क़त थी
मैंने तुमको याद ही करना छोड़ दिया
मेरे होठों के सब्र से पूछो
उसके हाथों से गाल तक का सफ़र