जगह की क़ैद नहीं थी कोई कहीं बैठे

जगह की क़ैद नहीं थी कोई कहीं बैठे

जहाँ मक़ाम हमारा था हम वहीं बैठे


अमीर-ए-शहर के आने पे उठना पड़ता है

लिहाज़ा अगली सफ़ों में कभी नहीं बैठे