टकरा गया वो मुझ से किताबें लिए हुए
टकरा गया वो मुझ से किताबें लिए हुए
फिर मेरा दिल और उस की किताबें बिखर गईं

@unknown
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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टकरा गया वो मुझ से किताबें लिए हुए
फिर मेरा दिल और उस की किताबें बिखर गईं
नतीजा फिर वही होगा सुना है साल बदलेगा
परिंदे फिर वही होंगे शिकारी जाल बदलेगा
ये साल भी उदासियाँ दे कर चला गया
तुम से मिले बग़ैर दिसम्बर चला गया
कई जवाबों से अच्छी है ख़ामुशी मेरी
न जाने कितने सवालों की आबरू रक्खे
अच्छी सूरत को सँवरने की ज़रूरत क्या है
सादगी में भी क़यामत की अदा होती है
दुनिया में वही शख़्स है ताज़ीम के क़ाबिल
जिस शख़्स ने हालात का रुख़ मोड़ दिया हो
कोई चादर वफ़ा नहीं करती
वक़्त जब खींच-तान करता है
तन्हाइयाँ तुम्हारा पता पूछती रहीं
शब-भर तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया
मिलने का वादा उन के तो मुँह से निकल गया
पूछी जगह जो मैंने कहा हँस के ख़्वाब में
ज़िंदगी यूँही बहुत कम है मोहब्बत के लिए
रूठ कर वक़्त गँवाने की ज़रूरत क्या है
उस वक़्त इंतिज़ार का आलम न पूछिए
जब कोई बार बार कहे आ रहा हूँ मैं
कितने दिलों को तोड़ती है कमबख़्त फरवरी
यूँ ही नहीं किसी ने इसके दिन घटाए हैं
ये दुनिया ग़म तो देती है शरीक-ए-ग़म नहीं होती
किसी के दूर जाने से मोहब्बत कम नहीं होती
यादों की शाल ओढ़ के आवारा-गर्दियाँ
काटी हैं हम ने यूँ भी दिसम्बर की सर्दियाँ
ज़िंदगी कहते हैं जिस को चार दिन की बात है
बस हमेशा रहने वाली इक ख़ुदा की ज़ात है
मुनाफ़िक़ दोस्तों से लाख बेहतर हैं ख़ुदा दुश्मन
कि ग़द्दारी नवाबों से हुकूमत छीन लेती है
आस्था का रंग आ जाए अगर माहौल में
एक राखी ज़िंदगी का रुख़ बदल सकती है आज
तू दिल पे बोझ ले के मुलाक़ात को न आ
मिलना है इस तरह तो बिछड़ना क़ुबूल है
अरक़ नहीं तिरे रू से गुलाब टपके है
अजब ये बात है शोले से आब टपके है
क्या क़यामत है कि आरिज़ उन के नीले पड़ गए
हम ने तो बोसा लिया था ख़्वाब में तस्वीर का