बोसा जो तलब मैं ने किया हँस के वो बोले
बोसा जो तलब मैं ने किया हँस के वो बोले
ये हुस्न की दौलत है लुटाई नहीं जाती

@unknown
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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बोसा जो तलब मैं ने किया हँस के वो बोले
ये हुस्न की दौलत है लुटाई नहीं जाती
लजा कर शर्म खा कर मुस्कुरा कर
दिया बोसा मगर मुँह को बना कर
एक बोसे के तलबगार हैं हम
और माँगें तो गुनहगार हैं हम
नया साल आया है ख़ुशियाँ मनाओ
नए आसमानों से आँखें मिलाओ
अब के बार मिल के यूँ साल-ए-नौ मनाएँगे
रंजिशें भुला कर हम नफ़रतें मिटाएँगे
नए साल में पिछली नफ़रत भुला दें
चलो अपनी दुनिया को जन्नत बना दें
हम अगर सब्र में रहते हैं तो क्या कुछ भी नहीं
जाने वालो कभी आ देखो बचा कुछ भी नहीं
हिन्दी में और उर्दू में फ़र्क़ है तो इतना
वो ख़्वाब देखते हैं हम देखते हैं सपना
रहबर भी ये हमदम भी ये ग़म-ख़्वार हमारे
उस्ताद ये क़ौमों के हैं मे'मार हमारे
देखा न कोहकन कोई फ़रहाद के बग़ैर
आता नहीं है फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर
जिन के किरदार से आती हो सदाक़त की महक
उन की तदरीस से पत्थर भी पिघल सकते हैं
गुलशन से कोई फूल मयस्सर न जब हुआ
तितली ने राखी बाँध दी काँटे की नोक पर
या रब मिरी दुआओं में इतना असर रहे
फूलों भरा सदा मिरी बहना का घर रहे
ज़िंदगी भर की हिफ़ाज़त की क़सम खाते हुए
भाई के हाथ पे इक बहन ने राखी बाँधी
बहन का प्यार जुदाई से कम नहीं होता
अगर वो दूर भी जाए तो ग़म नहीं होता
इस मरज़ से कोई बचा भी है
चारागर इश्क़ की दवा भी है
तुम्हारे नाम की हर लड़की से मिला हूँ मैं
तुम्हारा नाम फ़क़त तुम पे अच्छा लगता है
उसकी बस्ती से पहले कब्रिस्तान
आशिकों के लिए इशारा था
ये सोच कर के वो खिड़की से झाँक ले शायद
गली में खेलते बच्चे लड़ा दिये मैंने
इन का उठना नहीं है हश्र से कम
घर की दीवार बाप का साया