"बुझ गए नील-गगन"
"बुझ गए नील-गगन"
अब कहीं कोई नहीं

@nida-fazli
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
Followers
0
Content
182
Likes
0
"बुझ गए नील-गगन"
अब कहीं कोई नहीं
"कच्ची दीवारें"
मेरी माँ हर दिन अपने बूढे हाथों से
"मशीन"
मशीन चल रही हैं
"पिघलता धुआँ"
दूर शादाब पहाड़ी पे बना इक बंगला
"जेब कटने के ब'अद"
मिरे कुर्ते की बूढ़ी जेब से कल
"सरहद-पार का एक ख़त पढ़ कर"
दवा की शीशी में
"चौथा आदमी"
बैठे बैठे यूँही क़लम ले कर
"नज़्म बहुत आसान थी पहले"
नज़्म बहुत आसान थी पहले
"खेलता बच्चा"
घास पर खेलता है इक बच्चा
"एक कहानी"
तुम ने
"नींद पूरे बिस्तर में नहीं होती"
नींद पूरे बिस्तर में नहीं होती
"वो लड़की"
वो लड़की याद आती है
"सुना है मैं ने"
सुना है मैं ने!
"बस यूँही जीते रहो"
बस यूँही जीते रहो
"क़ौमी यक-जेहती"
वो तवाइफ़
"इंतिज़ार"
मुद्दतें बीत गईं
"वक़्त से पहले"
यूँ तो हर रिश्ते का अंजाम यही होता है
"लफ़्ज़ों का पुल"
मस्जिद का गुम्बद सूना है
"सोने से पहले"
हर लड़की के
"फ़ासला"
ये फ़ासला