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NAZM

"कच्ची दीवारें"

"कच्ची दीवारें"

मेरी माँ हर दिन अपने बूढे हाथों से

इधर उधर से मिट्टी ला कर

घर की कच्ची दीवारों के ज़ख़्मों को

भरती रहती है

तेज़ हवाओं के झोंकों से

बेचारी कितना डरती है

मेरी माँ कितनी भोली है

बरसों की सीली दीवारें

छोटे-मोटे पैवंदों से

आख़िर कब तक रुक पाएँगी

जब कोई बादल गरजेगा

हर हर करती ढह जाएँगी

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"कच्ची दीवारें" — Nida Fazli • ShayariPage