मुझे अब तुम से डर लगने लगा है
मुझे अब तुम से डर लगने लगा है
तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या

@jaun-elia
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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मुझे अब तुम से डर लगने लगा है
तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या
मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद से
याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया
मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले
अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को
मुस्तक़िल बोलता ही रहता हूँ
कितना ख़ामोश हूँ मैं अंदर से
और तो क्या था बेचने के लिए
अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं
क्या कहा इश्क़ जावेदानी है!
आख़िरी बार मिल रही हो क्या
किस लिए देखती हो आईना
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो
क्या सितम है कि अब तिरी सूरत
ग़ौर करने पे याद आती है
कौन इस घर की देख-भाल करे
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है
बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या
मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो फिर दुनिया की परवाह क्यूँ करें हम
'जौन' दुनिया की चाकरी कर के
तूने दिल की वो नौकरी क्या की
ज़िंदगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में
ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को
अपने अंदाज़ से गँवाने का
जमा हम ने किया है ग़म दिल में
इस का अब सूद खाए जाएँगे
ख़र्च चलेगा अब मेरा किस के हिसाब में भला
सब के लिए बहुत हूँ मैं अपने लिए ज़रा नहीं
कौन से शौक़ किस हवस का नहीं
दिल मेरी जान तेरे बस का नहीं
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
काम की बात मैंने की ही नहीं
ये मेरा तौर-ए-ज़िंदगी ही नहीं