@jaun-elia
Explore the poetic brilliance of renowned Pakistani poet Jaun Elia, featuring a diverse collection of sher, ghazal, and nazm in both Hindi and English. Delve into his genius and save your cherished verses.
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मैं तो सफों के दरमियां कब से पड़ा हूं नीम जाँ,
मेरे तमाम जाँ निसार मेरे लिए तो मर गए
ज़ुलेखा ए अज़ीज़ाँ बात ये है
भला घाटे का सौदा क्यूँ करें हम ?
इक हुस्न-ए-बेमिसाल की तम्सील के लिए
परछाइयों पे रंग गिराता रहा हूँ मैं
हुस्न बला का कातिल हो पर आखिर को बेचारा है
इश्क़ तो वो कातिल जिसने अपनों को भी मारा है
ये धोखे देता आया है दिल को भी दुनिया को भी
इसके छल ने खार किया है सहरा में लैला को भी
गाहे गाहे बस अब यही हो क्या
तुमसे मिलकर बहुत खुशी हो क्या
कल दोपहर अजीब इक बेदिली रही
बस तिल्लियाँ जलाकर बुझाता रहा हूँ मैं
न हुआ नसीब क़रार ए जाँ हवस ए क़रार भी अब नहीं
तिरा इंतिज़ार बहुत किया तिरा इंतिज़ार भी अब नहीं
चाँद ने ओढ़ ली है चादर-ए-अब्र
अब वो कपड़े बदल रही होगी
उसके बदन को दी नुमूद हमने सुखन में और फिर
उसके बदन के वास्ते इक क़बा़ भी सी गई